मेरठ: बच्चे को शुगर है तो एम्स नहीं, खासियत डायबिटीज क्लीनिक की

मेरठ। अगर बच्चे को डायबिटिज है और इलाज के लिए एम्स नई दिल्ली जाना चाहते हैं तो रुकिए। एम्स ने मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग की डायबिटीज क्लीनिक को मान्यता दे दी है।



अगर बच्चे को शुगर है और इलाज के लिए एम्स नई दिल्ली जाना चाहते हैं तो रुकिए। एम्स ने मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग की डायबिटीज क्लीनिक को मान्यता दे दी है।


प्रदेश सरकार एम्स के साथ एमओयू साइन करेगी। मेडिकल कालेज और एम्स न सिर्फ बच्चों को सुपरस्पेशियलिटी इलाज उपलब्ध कराएंगे, बल्कि शोध कार्यो और नई दवाओं के मरीजों पर प्रयोग की जानकारी भी साझा करेंगे।


एम्स की निगरानी में संचालित होने वाली ये उत्तर प्रदेश की पहली डायबिटीज क्लीनिक होगी।



पहली उच्चीकृत क्लीनिक लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग और एम्स ने पैक्ट किया है। ऐसे में शोध के लिए मरीजों का बड़ा पूल मिलेगा।


बाल रोग विभागाध्यक्ष डा. विजय जायसवाल हार्मोन्स रोग विशेषज्ञ हैं। उन्होंने बताया कि पश्चिमी उप्र के बच्चों में शुगर के इलाज के लिए एम्स जाने वाले लोगों को जल्द ही मेरठ में इलाज उपलब्ध होगा।


प्रदेश के 11 राजकीय मेडिकल कालेजों में यह पहली उच्चीकृत क्लीनिक होगी।


बचपन में शुगर का घुन ये है....


टाइप-1 शुगर-बच्चों के पैंक्रियाज में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। ये बीमारी अनुवांशिक कारणों से ज्यादा होती है। भारत में करीब आठ साल की उम्र में बीमारी का पता चलता है।


ज्यादा खाने एवं पानी पीने के बाद भी थकान, वजन में कमी व बार-बार पेशाब के लक्षण उभरते हैं।


एचबीए1सी-ग्लाइकोसाइलेटेड हीमोग्लोबिन की जांच में पिछले तीन माह की वैल्यू 6.6 प्रतिशत से ज्यादा मिलती है तो स्पष्ट है कि ब्लड शुगर लगातार 150 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर बनी हुई है।


एकमात्र इलाज इंसुलिन देना होता है। भारत में प्रति तीन सौ बच्चों में एक में टाइप-1 मिलती है।


टाइप-2 शुगर- ये 16 साल के बच्चों में भी मिलने लगी है। मोटापा, बिगड़ी लाइफ स्टाइल, खानपान व ज्यादा वजन से ये बीमारी होती है। वयस्कों में ज्यादा है।


विशेषज्ञ कहते हैं एम्स ने बाल रोग विभाग के डायबिटीज सेंटर को मान्यता दे दी है। प्रदेश सरकार के जरिए ये सेंटर एम्स से सम्बद्ध हो जाएगा।


बच्चों में शुगर का उच्चीकृत इलाज के साथ ही शोध एवं नई दवाओं की उपयोगिता एवं प्रभाव का भी अध्ययन होगा।